आलेख:- बृजमोहन जोशी,नैनीताल।
… भारतीय समाज में लोक नाट्य की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है।इसके जन्म का पता लगा पाना तो बड़ा दुष्कर कार्य है। परन्तु यह स्पष्ट है कि इसका अपना दीर्घ जीवन रहा है। मानव ने अपने भावों अपने विचारों को विभिन्न भाषाओं -बोलियों और संकेतों के द्वारा अपने हर्ष उल्लास को अभिव्यक्त किया होगा मनोरंजन के लिए और तभी से लोक नाट्य की शुरुआत हुई होगी। लोक नाट्य की प्रस्तुति के लिए न तो किसी रंगमंच कि और न ही किसी पुस्तक की आवश्यकता होती है। लोक नाट्य जन सामान्य का मंच है और इसका मुख्य उद्देश्य मनोरंजन ही होता है किन्तु इसमें सामाजिक विसंगतियों व कुरीतियों पर भी करारा व्यंग होता है। यह शिक्षा प्रद होते हैं।
….. कुमाऊंनी लोक नाट्यों में स्वांग – ठेठर, छोलिया,गंवरा मैसर, हिल जात्रा, हिरन- चित्तल,जागर,बैसी व रामलीला आदि को लिया जा सकता है। इस आलेख में संक्षिप्त रूप से हिल जात्रा तथा हिरन चित्तल के सम्बन्ध में जानकारी सांझा कर रहा हूं। हिरन चित्तल – कुमाऊं के सीरा क्षेत्र की अस्कोट पट्टी में यह लोक उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसमें रंगबिरंगे कपड़ों में सजाकर सिंगों से
युक्त हिरन का मुखौटा पहनकर लोग हिरन चित्तल का अर्थात चित कबरा हिरन बनकर विभिन्न भाव भंगिमाओं में नृत्य करते हैं इस उत्सव में लोक देवता “बालचिन” ग्वाला बनकर चंवर गाय की पूंछ से हिरन चित्तल को झाड़ता फूकता नृत्य करता है। यह मूलतः लोक नृत्य है। परन्तु अभिनय कि प्रधानता के कारण इसे लोक नाट्य में शामिल किया जा सकता है।
हिल जात्रा– यहां हिल शब्द का अर्थ है किचड़ और जात्रा शब्द का अर्थ है यात्रा। अर्थात किचड़ में यात्रा। यहां हिल का अर्थ पहाड़ से नहीं है। पहले जब लोगों के पास मनोरंजन के साधन नहीं होते थे तो तब ऐसे लोक उत्सवों में सामान्य जन की भागीदारी बहुत अधिक होती थी।हिल जात्रा का मुख्य उद्देश्य सुख समृद्धि की कामना के साथ कृषि से जुड़ी सारी गतिविधियों को अभिनय के माध्यम से परिचित कराने का प्रयास है। इतिहासकार मानते हैं कि मणिपुर ,अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम आदि प्रान्तों में मुखौटा नृत्य की परम्परा है और बंगाल में जात्रा की परम्परा है। भगवान शिव के गण वीर भद्र (लखिया भूत) के प्रसन्न होने से गांव में तथा आस पास के क्षेत्र में किसी प्रकार की आपदा नहीं आती है इस खेल के अन्त में लखिया भूत सभी को आशीष देता हैं और अगले वर्ष पुनः सभी लोगों के मिलने की कामना के साथ यह उत्सव समाप्त हो जाते है।



