आलेख व संकलन :-बृजमोहन जोशी, नैनीताल।
नैनीताल:-प्रताप भैय्या पहाड़ की उन महान विभूतियों में एक ऐसे शिखर पुरुष हैं जो अपने काम से अपना नाम इतिहास में सदा के लिए अमर कर गए हैं। वे शिक्षा ज्ञान की ज्योति जलाने वाले ऐसे ध्रुव तारा हैं जो अपनी चमक दमक से सबसे अलग पहचाना जाता है।
प्रताप भैय्या जी का जन्म १० दिसम्बर १९३० को नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लाक के ग्राम च्यूरी गाड़ में माता पार्वती देवी और पिता आन सिंह बोरा जी के घर में हुआ।आन सिंह जी एक सामान्य कृषक थे।किन्तु गांधी जी कि विचार धारा के प्रति समर्पित थे।आपकी प्रारम्भिक शिक्षा प्राइमरी पाठशाला से हुई, जूनियर हाईस्कूल ओखलकांडा से, हाई स्कूल की शिक्षा नारायण स्वामी हाई स्कूल रामगढ़ से इण्टर की शिक्षा राजकीय इंटर कालेज नैनीताल से१९४७ में उत्तीर्ण की तथा आपकी उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से हुई। विश्वविद्यालय प्रवास के दौरान आप तत्कालीन कुलपति आचार्य नरेन्द्र जी के सम्पर्क में आए और वहां से आपकी विचारधारा और महत्वकांक्षाओं को एक नयी दिशा प्राप्त हुई। भैय्या जी कभी भी किसी क्षेत्र विशेष के दायरे तक सीमित नहीं रहे,जिस प्रकार उनका व्यक्तित्व, धर्म,जाति तथा सम्प्रदाय की सीमाओं से मुक्त है उसी प्रकार उनके कार्य कलाप भी राजनीत, शिक्षा तथा समाज सेवा की विभिन्न विधाओं तक व्याप्त है।१जुलाई१९६४ ई. मे आपने भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय नैनीताल की स्थापना की। इसके बाद आपने १९६९ में आचार्य नरेन्द्र देव शिक्षा निधि कि स्थापना की और तब से लेकर अपने जीवन के आखिरी पड़ाव तक गांवों से लेकर शहरों तक लगभग सवा सौ विद्यालय खोले जिनके संस्थापक और संचालक आप स्वयं ही थे। बिना साधनों के ही अकेले अपने दम पर शिक्षा के क्षेत्र में इतना बड़ा भारी योगदान देने की भारत के इतिहास में कोई और दूसरी मिसाल देखने सुनने में नहीं आती।आराम आपके लिए हराम था। दिन रात काम,बस काम। न आपका मुंह चुप रहता था न दिमाग थकता था,न उनकी कलम रूकती थी और न उनका चलना फिरना बंद होता था। सन् १९५७ में आप खटीमा क्षेत्र से और सन् १९६७ के चुनाव में नैनीताल क्षेत्र से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए।और स्वास्थ्य सहकारिता मंत्री का कार्य भार सम्हाला लोक तंत्र और समाज वाद उनकी नस-नस में था।उनका हर कार्य लोक तांत्रिक रहता।शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान किसी से छिपा नहीं है।जात-पात और छूआ छूत किसी भी राष्ट्र की प्रगति में बाधक हैऔर उनके शिक्षण संस्थानों में बाल सैनिकों के नाम के पिछे जाति सूचक शब्द नहीं मिलता।उन्होंने जाति सूचक शब्द को तोड़ा।उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए विद्यालयों व अन्य संस्थाओं के माध्यम से जनता को जागरूक किया ।
ऐसे उर्जावान शक्तिपुंज, विचारवान,दयावान,बुद्धीमान, स्वाभिमानी, महान शिक्षाविद, कर्मवीर लम्बी बिमारी के बाद २३ अगस्त सन् २०१० को हमारे बीच से चल दिए, लेकिन अपने कार्यों और विचारों से युग युगों तक हमारे बीच में हमेशा विद्यमान रहेंगे।
मुझे आज भी वो दिन याद है जब हमने अपने दो बहुआयामी व्यक्तित्वों (विभूतियों) को खोया था २२ अगस्त सन् २०१० को पहले जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा हमारे बीच नहीं रहे और २३ अगस्त २०१० को भैय्या जी भी हमारे बीच नहीं रहे।
पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल तथा नैनीताल के हम सभी कलाकारों, संस्कृति कर्मियों, शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े सभी संस्थाओं,अनेक संगठनों से जुड़े तमाम सहयोगियों की ओर से इन दोनों विभूतियों को शत-शत नमन करते हैं अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं।
हम सभी गिर्दा व भैय्या जी के कृतित्व व व्यक्तित्व से भलीभांति परिचित हैं। इस जानकारी को सांझा करना और उनके शिक्षा प्रद कार्यों को अपने जीवन में अपनाना हम सब का दायित्व भी है। यहीं इनके प्रति हमारी सच्ची श्रृद्धांजलि होगी।….
भैय्या जी का नारा था – सन् १९५० में डा. राम मनोहर लोहिया जी के नेतृत्व में ” एक घंटा देश के नाम “!
भैय्या जी को पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि – शत् शत् नमन।
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