संकलन – बृजमोहन जोशी,नैनीताल।
नैनीताल :- गुरु पूर्णिमा अर्थात सदगुरु के पूजन का पर्व।गुरु की पूजा गुरु का आदर किसी व्यक्ति की पूजा नहीं है,किसी व्यक्ति का आदर नहीं है अपितु गुरु के देह के अन्दर जो विदेही आत्मा है – परब्रह्म परमात्मा है उसका आदर है,उस ज्ञान काआदर है,उस ज्ञान का पूजन है, ब्रह्मज्ञान का पूजन है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
श्री गोस्वामी तुलसीदास जी गुरु की महिमा का बखान इन शब्दों में करते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी श्री राम चरित मानस के आरम्भ में गुरु की वन्दना करते हुए लिखते हैं
बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नारुप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रवि कर निकल ।।
बंदउ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अर्थात – ” मैं गुरु महाराज के चरण कमल की रज को प्रणाम करता हूं,जो अच्छी रूचि और प्रेम को उत्पन्न करने वाली, सुगन्धित और सारसहित है।”
गोस्वामी तुलसीदास जी श्री राम चरित मानस में आगे लिखते हैं – श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारि। वरनउ रघुवर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।। उपर्युक्त दोहे को स्पष्ट करते हुए महर्षि ने कहा है कि मैं गुरु के चरण कमल धूलि से अपने मनरुपी दर्पण को स्वच्छ कर श्री राम के पवित्र यश का वर्णन करता हूं जो चारों फलों (अर्थ ,धर्म, काम, तथा मोक्ष )को देने वाले हैं। शिष्य वर्ग में भी अपने गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और परमब्रह्म के समकक्ष मानने की सूक्ति बहुत प्रचलित है –
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर :! गुरु : साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः!!
महर्षि याज्ञवल्क्य ने लिखा है –
उपनीय गुरु: शिष्यं महाव्याह्रतिपूर्वकम ।
वेदमध्यापयेदेनं शौचाचारांश्च शिक्षयेत।।
( याज्ञवल्क्य स्मृति १/२/१५)
अर्थात उपनयन की विधि सम्पन्न हो जाने पर गुरु अपने शिष्य को ‘ भू:” भुव:” स्व :’- इन व्याहृतियों का उच्चारण कराकर वेद पढ़ाये और दन्त धावन एवं स्नान आदि के द्वारा शौच के नियमों को सिखाये तथा उसके हितार्थ आचार की भी शिक्षा दे।आचार परम् धर्म माना गया है।
गुरु सर्वेश्वर का साक्षात्कार करवाकर शिष्य को जन्म मरण के बन्धन से मुक्त कर देते हैं।
यह सबसे बड़ी पूर्णिमा मानी जाती है। गुरु पूर्णिमा आस्था का पर्व है, श्रृद्धा का पर्व है, समर्पण का पर्व है।
समस्त गुरुजनों को शत् शत् नमन।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।


