आलेख -बृजमोहन जोशी, अमर कंटक (मध्य प्रदेश)!
नैनीताल:-कुमाऊं अंचल में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कोजागरी छोटी दिवाली के रूप में मनाई जाती है।
छोटी दिवाली अर्थात स्थानिय भाषा में इसे “नानि दिवाली” कहा जाता है,अर्थात महालक्ष्मी जी की बाल अवस्था के रूप में हम इसे महालक्ष्मी पूजन की तरह मनाते हैं। जिस तरह महालक्ष्मी पूजन के दिन गन्ने की सहायता से महालक्ष्मी के यौवन रूप का निर्माण किया जाता है ,ऐपण दिये जाते हैं तथा महालक्ष्मी पूजन किया जाता है ठीक उसी तरह संक्षिप्त रूप में कोजागर के दिन महालक्ष्मी जी की बाल मूर्ति का निर्माण गन्ने की सहायता से कर उसे पारम्परिक लोक परिधान व आभूषण आदि पहनाकर महालक्ष्मी पूजन किया जाता है।
हमारे इस अंचल के वृद्ध लोगों के मतानुसार दिवाली- महा लक्ष्मी जी की तीन अवस्थाओं की ओर इंगित करती है पहली- अवस्था
“नानि दिवाली” अर्थात छोटी दीपावली (कोजागर) /शरद पूर्णिमा महालक्ष्मी जी की बाल अवस्था , दूसरी “ठुली दिवाली” अर्थात बड़ी दीपावली- (महालक्ष्मी पूजन) महा लक्ष्मी जी की यौवन अवस्था , तीसरी अवस्था- हरि बोधिनी एकादशी- (बुढ़ी दिवाली) महा लक्ष्मी जी की “वृद्ध अवस्था” !
इस अंचल में कोजागरी से हरि बोधिनी एकादशी -अर्थात बूढ़ी दिवाली जिसका स्थानीय नाम “टकटकु एकादशी “भी है। इस दिन से प्रतिदिन संध्या के समय आकाश दीप जलाया जाता है। और यह भी लोक मान्यता है कि लगभग एक माह तक जलने वाले इस आकाश दीप का प्रकाश हमारे पितरों के लिए वर्ष भर के लिए होता है।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरत्पूर्णिमा कहलाती है। शरत्पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की चांदनी में अमृत का निवास रहता है,इसलिए उसकी किरणों से अमृत्व और आरोग्य की प्राप्ति शुलभ होती है।
कोजागर – इस दिन भगवती महालक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए घूमती है कि कौन जाग रहा है जो जाग रहा है उसे धन- सम्पदा देती हैं। “को जाग्रति” कहने के कारण इस व्रत का नाम कोजागर पड़ा है।
इस तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने रास लीला की थी।इसलिए व्रज में इस पर्व को विशेष उत्सव के साथ मनाया जाता है। इसे” रासोत्सव” या ” कौमुदी- महोत्सव” भी कहते है इस दिन अपने कुल पुरोहित/ आचार्य/ब्राह्मण जी को कांस्य पात्र में घी भरकर दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता है। हमारे इस अंचल में भी किसी भी संस्कार, धार्मिक अनुष्ठान, कर्मकांड
,पूजन आदि के सम्पन्न हो जाने के उपरांत अपने- अपने आचार्य/कुल पुरोहित/ ब्राह्मण जी को एक पात्र में चावल भरकर उसके ऊपर घी का दीपक जलाकर दान देने की परम्परा है। कार्तिक का यह सम्पूर्ण माह दीप पर्व के नाम से जाना जाता है।
आप सभी महानुभावों को शरद पूर्णिमा / कोजागरी/ छोटी दिवाली के पावन पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।


