आलेख:-बृजमोहन जोशी, नैनीताल।
ज्येष्ठ मास के व्रतों में ‘वट सावित्री व्रत ‘ एक प्रभावी व्रत है।इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं अपने अखण्ड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए यह व्रत करती है। सौभाग्यवती महिलाऐं श्रृद्धा के साथ ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों का उपवास रखती हैं।
वटवृक्ष देववृक्ष है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार – वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन विष्णु तथा अग्र भाग में देवाधिदेव शिव स्थित रहते हैं। देवी सावित्री भी वटवृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं। इसी अक्षय वट के पत्रपुटक पर प्रलय के अन्तिम चरण में भगवान श्री कृष्ण ने बालरूप में मार्कण्डेय ऋषि को प्रथम दर्शन दिए थे। प्रयागराज में गंगा के तट पर वेणीमाधव के निकट अक्षय वट प्रतिष्ठित है। भक्त शिरोमणि तुलसी दास जी ने संगम स्थित इस अक्षय वट को तीर्थराज का छत्र कहा है।
इसी प्रकार तीर्थों में पंचवटी का भी विशेष महत्व है।पांच वटों से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया है। कुम्भज मुनि के परामर्श से भगवान श्री राम ने सीता एवं लक्ष्मण के साथ वनवास काल में यहां निवास किया था। हानि कारक गैसों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्व है। वटवृक्ष की औषधि के रूप में उपयोगिता से हम सभी परिचित हैं। जैसे वटवृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय बना रहता है, ठीक उसी प्रकार दीर्घ आयु,अक्षय सौभाग्य तथा निरन्तर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए वट वृक्ष की आराधना की जाती है। इसी वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से अपने मृत पति को पुनः जीवित किया था। तब से यह व्रत वटसावित्री के नाम से किया जाता है।
यदी तीन दिन व्रत करने की सामर्थ न हो तो त्रयोदशी को रात्रि भोजन, चतुर्दशी को अयाचित तथा अमावस्या को उपवास करके प्रतिपदा को पारण करना चाहिए। पूजन के समय वटवृक्ष कि परिक्रमा करते समय १०८ बार या यथा शक्ति सूत्र लपेटा जाता है। महिलाऐं इस दिन १२ गांठ का डोर धारण करती हैं। नवविवाहिताओं के द्वारा विवाह के प्रथम वर्ष से ही इस व्रत को करने का संकल्प लिया जाता है ।
इस व्रत के पूजन हेतु उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में कुमाऊंनी पारम्परिक लोक चित्र कला’ ऐपण’ विधा के अन्तर्गत गेरू विस्वार की सहायता से घर के प्रवेश भाग धेई (देली) में, पूजा गृह मन्दिर में ऐपण दिये जाते हैं तथा मन्दिर कि दीवार पर प्राकृतिक रंगों की सहायता से महिलाओं के द्वारा पट्टा चित्रण शैली में ‘वट सावित्री’ के पट्टे का निर्माण कर पूजन किया जाता है। इस पूजन को महिलाऐं सामूहिक रूप से करती है।
आप सभी को वटसावित्री व्रत के पावन पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।


