आलेख – बृजमोहन जोशी,नैनीताल।
नैनीताल:- भाद्र पद शुक्ल पक्ष की पंचमी ” ऋषि पंचमी” कहलाती है।इस दिन किए जाने वाले व्रत को ऋषि पंचमी व्रत कहते हैं।यह व्रत ज्ञात अज्ञात पापों के शमन के लिए किया जाता है, अतः स्त्री पुरुष दोनों इस व्रत को करते हैं। स्त्रियों से रजस्वला अवस्था में घर के पात्रादि का प्रायः स्पर्श हो जाता है, इससे होने वाले पाप के शमन के लिए इस व्रत को करती हैं। इस व्रत में सप्त ऋषियों सहित अरूंधति का पूजन किया जाता है।
इस व्रत के सम्बन्ध में एक कथा इस प्रकार है कि – सत्ययुग में श्येनजित नामक एक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में सुमित्र नाम वाला एक ब्राह्मण रहता था जो वेदों का विद्वान था।सुमित्र खेती द्वारा अपने परिवार का भरण पोषण करता था।उसकी पत्नी जय श्री सती, साध्वी और पति व्रता थी। एक बार रजस्वला अवस्था में अनजाने में उसने घर का सब कार्य किया और पति का भी स्पर्श कर लिया। दैव योग से पति पत्नी का शरीरान्त एक साथ ही हुआ। रजस्वला अवस्था में स्पर्धास्पर्श का विचार न रखने के कारण स्त्री ने कुतिया और पति ने बैल की योनि प्राप्त की, परन्तु पूर्व जन्म में किए गए अनेकों धार्मिक कृत्यों के कारण उन्हें ज्ञान बना रहा। संयोग से इस जन्म में भी साथ साथ अपने ही घर में अपने पुत्र और पूत्रवधू के साथ रह रहे थे। ब्राह्मण का पुत्र भी वेदों का विद्वान था।पितृ पक्ष में उसने अपने माता-पिता का श्राद्ध करने के उद्देश्य से पत्नी से कहकर खीर बनवायी और ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया।उधर एक सर्प ने आकर खीर को विषाक्त कर दिया। कुतिया बनी ब्राह्मणी यह सब देख रही थी। उसने सोचा कि यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेंगे तो विष के प्रभाव से मर जायेंगे और सुमिती को पाप लगेगा।ऐसा विचार कर उसने सुमति की पत्नी के सामने ही जाकर खीर को छू दिया। इस पर सुमति की पत्नी बहुत क्रोधित हुई और चूल्हे से जली लकड़ी निकालकर उसकी पिटाई कर दी।उस दिन उसने कुतिया को भोजन भी नहीं दिया।
रात्रि में कुतिया ने बैल को सारी घटना बताई।बैल ने कहा कि आज तो मुझे भी कुछ खाने को नहीं दिया गया जबकि मुझसे दिन भर काम लिया गया।सुमति हम दोनों के ही उद्देश्य से श्राद्ध कर रहा है और हमें ही भूखा मार रहा है। इस तरह हम दोनों के भूखे रह जाने से उसका श्राद्ध करना ही व्यर्थ हुआ।सुमति घर के द्वार पर लेटा कुतिया और बैल की बात सुन रहा था।वह पशुओं की बोली भली भांति समझता था।उसे यह जानकर अत्यंत दुख हुआ कि मेरे माता-
पिता इन निकृष्ट योनियों में पड़े हैं।वह एक ऋषि आश्रम में गया और उनसे अपने माता-पिता के पशु योनि में पड़ने का कारण और मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने ध्यान और योग बल से सारा वृत्तांत जान लिया। उन्होंने सुमति से कहा तुम पति पत्नी भाद्र पद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत करो और उस दिन बैल के जोतने से उत्पन्न कोई भी अन्न न खाओ। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता-पिता की मुक्ति हो जायेगी। अनन्तर मातृ पितृ भक्त सुमति ने स पत्नी ऋषि पंचमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसके माता-पिता को पशु योनि से मुक्ति मिल गयी।
इस अंचल में आज भी इस व्रत को पूर्ण विधि -विधान के साथ किया जाता है किन्तु अब ऋषि पंचमी व्रत का प्रचलन बहुत ही कम रह गया है।इस दिन व्रत रखने वाले कुटले का लगा अनाज साग सब्जी आदि ही खाते हैं इस व्रत में नमक भी वर्जित है।
इस व्रत के पार्श्व में सोच यह रही है कि माहवारी के समय स्त्री का शरीर कमजोर होता है, अधिक श्रम साध्य कार्य से कठिनाईयां उत्पन्न हो जाती हैं। अतः इन दिनों विश्राम हेतु महिलाओं को दूर रखा गया होगा।इस व्रत कथा द्वारा उन दिनों में नियम पालन हेतु स्त्री तथा पुरुष को संयम से रहने की सलाह दी गई है।आप सभी महानुभावों को ऋषि पंचमी के पर्व की हार्दिक बधाई।