नैनीताल:-कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के आइक्यूएसी द्वारा आयोजित दो दिवसीय “शोध पद्धति एवं शैक्षणिक लेखन प्रशिक्षण कार्यक्रम” का आज सफलतापूर्वक समापन हुआ। कार्यक्रम में शोधार्थियों और युवा शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
द्वितीय दिवस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में आईआईटी रुड़की के प्रो. मनु गुप्ता ने “डेटा संग्रहण एवं सैम्पलिंग तकनीक” विषय पर विस्तृत एवं रोचक व्याख्यान दिया। उन्होंने शोध में डेटा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्राथमिक डेटा जैसे सर्वेक्षण, साक्षात्कार, अवलोकन तथा फोकस ग्रुप और द्वितीयक डेटा जैसे सरकारी रिपोर्ट, शोध लेख, ऑनलाइन डिजिटल रिपॉज़िटरी दोनों ही शोध की विश्वसनीयता को निर्धारित करते हैं। उन्होंने सैम्पलिंग फ्रेम, जनसंख्या व नमूना, सिंपल रैंडम सैंपलिंग, स्ट्रैटिफाइड सैंपलिंग, नमूना आकार निर्धारण, सैम्पलिंग बायस, नॉन-रिस्पॉन्स बायस, तथा रिस्पॉन्स बायस जैसी प्रमुख अवधारणाओं को सरल उदाहरणों से समझाया।
सत्र में प्रतिभागियों को रिग्रेशन एनालिसिस, क्लासिफिकेशन मॉडल्स, तथा डेटा-आधारित निर्णय निर्माण की आधुनिक पद्धतियों से परिचित कराया गया। प्रो. गुप्ता ने शोध के लिए उत्कृष्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म—जैसे कैगल, डेटा.जीओवी.इन, मशीन लर्निंग रिपॉजिटरी आदिके उपयोग का प्रदर्शन किया। उन्होंने एक्सेल, एआई टूल्स और इंटरैक्टिव क्विज़ेस के माध्यम से डेटा विश्लेषण की व्यावहारिक जानकारी भी प्रदान की, जो शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई।
द्वितीय सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. जे. एन. सिन्हा ने “हाउ टू राइट ए पीएच.डी. थीसिस एंड कन्वर्ट इट इन टू ए बुक ” पर अत्यंत प्रेरक और मार्गदर्शक व्याख्यान दिया। उन्होंने शोध विषय के चयन से लेकर शोधप्रबंध लेखन तक की पूरी प्रक्रिया को सुगम शब्दों में समझाया। उन्होंने बताया कि शोध विषय वही चुनना चाहिए जिसमें शोधार्थी की वास्तविक रुचि हो। व्यापक साहित्य समीक्षा, शोध में प्रयोग की जाने वाली विधियों, शोध के ढांचे तथा सीमाओं का स्पष्ट उल्लेख शोध की गुणवत्ता को और मजबूत करता है।
उन्होंने प्रभावी लेखन शैली के लिए सरल भाषा, छोटे वाक्यों, स्पष्ट तर्क, संगत अध्याय संरचना, और शिकागो मैन्युअल ऑफ़ स्टाइल जैसी अंतरराष्ट्रीय नियमावली के उपयोग पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शोध-प्रबंध को पुस्तक में बदलते समय शीर्षक को आकर्षक बनाना, जटिल भाषाई संरचनाओं को सरल करना, फुटनोट कम करना तथा सामग्री को पाठक-मैत्री बनाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने पुस्तक प्रकाशन से संबंधित प्रक्रियाओं जैसे प्रकाशक चयन, रॉयल्टी, संपादन एवं पुस्तक प्रस्ताव पर अपने व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किए।
कार्यक्रम का समापन में मुख्य अतिथि प्रो. दिव्या यू. जोशी रहीं। अपने संबोधन में उन्होंने शोध पद्धति, भाषा कौशल, संदर्भ प्रबंधन एवं शैक्षणिक ईमानदारी के महत्व पर बल दिया। उन्होंने प्रतिभागियों को निरंतर अध्ययन, नियमित लेखन अभ्यास और गुणवत्ता आधारित शोध कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम समन्वयक प्रो रीतेश साह ने कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय की अकादमिक उन्नति उच्च गुणवत्ता वाले शोध और मजबूत कार्यप्रणाली पर आधारित होती है। ऐसे प्रशिक्षण न केवल शोध की दिशा और दृष्टि को स्पष्ट करते हैं, बल्कि नवाचार, विश्लेषणात्मक सोच और शैक्षणिक अनुशासन को भी सुदृढ़ बनाते हैं।
अंत में उन्होंने प्रतिभागियों को आह्वान किया कि वे इस प्रशिक्षण में प्राप्त ज्ञान को अपने शोध कार्य में समाहित करें और विश्वविद्यालय तथा समाज के ज्ञान–परिदृश्य में सार्थक योगदान दें।
अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए और कार्यक्रम का सफल समापन हुआ।
इस अवसर पर डॉ. नंदन सिंह, डॉ. हर्ष चौहान, डॉ. सरोज, डॉ अशोक उप्रेती, डॉ सुरेश जोशी, डॉ. ऋचा गिनवाल, डॉ. दिलीप सहित अनेक संकाय सदस्य एवं विश्वविद्यालय के शोधार्थी उपस्थित रहे।






