आलेख:- बृजमोहन जोशी,नैनीताल।
नैनीताल:- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धन्वंतरि का जन्मोत्सव मनाया जाता है। समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य माना जाता है।देव दानवों द्वारा क्षीरसागर का मंथन करते समय भगवान धन्वंतरि संसार के समस्त रोगों के निवारण हेतु औषधियों को कलश में भरकर प्रकट हुए थे।उस समय त्रयोदशी तिथि थी। इसलिए उक्त तिथि में सम्पूर्ण भारत में तथा अन्य देशों में (जहां हिन्दूओं का निवास है) भगवान धन्वंतरि का जयंती महोत्सव मनाया जाता है। विशेषकर विद्वान तथा वैद्य समाज की ओर से सर्वत्र भगवान धन्वंतरि की मूर्ति/ प्रतिमा प्रतिष्ठित की जाती है और उनका भक्ति पूर्वक पूजन किया जाता है। लोगों के दीर्घ जीवन तथा आरोग्य लाभ के लिये मंगलकामना की जाती है। दूसरे दिन संध्या के समय जलाशय में इन मूर्तियों/ प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है।इस प्रकार भगवान धन्वंतरि प्राणियों को रोग मुक्त करने के लिए भव- भेषजावतार रूप में प्रकट हुए थे।कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि धनतेरस भी कहलाती है।इस दिन चांदी का बर्तन खरीदना अत्यंत शुभ माना गया है। परन्तु वस्तुत: यह व्रत यमराज से सम्बन्ध रखने वाला व्रत है।इस दिन सांयकाल के समय घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख दीप दान करना चाहिए तथा उसका गन्धादि से पूजन करना चाहिए।
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूरयज: प्रीयतामिति ।। यमुना जी यमराज की बहन हैं इसलिए धनतेरस के दिन यमुना स्नान का विशेष माहात्म्य है। यदि पूरे दिन का व्रत रखा जा सके तो अत्युत्तम है, किन्तु संध्या के समय दीपदान अवश्य करना चाहिए।
कार्तिक कस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युविरनश्यति।।
यह भी लोक मान्यता है कि धनतेरस पर दीपदान करने से मनुष्य की असामयिक मृत्यु नहीं होती है।
आप सभी महानुभावों को धनतेरस के पावन पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।


