नैनीताल:-उत्तराखंड की कुलदेवी का नंदा सुनंदा नव दुर्गा , पार्वती तथा प्रकृति के नंदा खाट में समाहित है ।मां नंदा सुनंदा का महोत्सव प्रकृति के प्रति हमें सचेत करता है तो प्रकृति की सुंदरता को भी समझाता है । पारिस्थितिकी रूप से अनुकूल प्राकृतिक उत्पादों से बनाए जानी वाली नंदा सुनंदा की मूर्ति का निर्माण किया जाता है उसमें बांस जो हरे में ही लिया जाता है उसे लोक पारंपरिक कलाकार पतली खपच्ची का निर्माण करते है तथा बॉस बहुत लचीला होता है जिससे मां नंदा सुनंदा का मुख मंडल तैयार किया जाता है । बॉस वानस्पतिक रूप से बम्बूसा के नाम से जाना जाता है । कपास जिससे रुई कहते है ये उभार देने के काम आता है । कपास का वानस्पतिक नाम गॉसिपियम आरबोरियम है । बॉस एवं रुई पवित्र है साथ ही मूर्ति का मुख्य स्तंभ कदली जिसे मूसा परडिसीएका कहा जाता है । मां नंदा सुनंदा मूर्ति में प्राकृतिक रंग से उनका उनका भव्य रूप तैयार होता है । मां का आसान भृंगराज से बनाया जाता है जिसे आर्टीमीसिया के रूप में जानते है वो औषधीय पौधा है । बरसात में खिलने वाला डहेलिया के माला मां को प्रिय है जिसे वानस्पतिक रूप से डहेलिया कहा जाता है ।उच्च हिमाली क्षेत्रों में ब्रह्मकमल मां को भक्ति में प्रस्तुत किया जाता है जिसे सौरसिया आबोवालेटा कहा जाता है । मां नंदा को ककड़ी कुकुमिस तथा नारियल कोकोस न्यूस फरा भेट किया जाने की परंपरा है । मां नंदा जो हिमालय संस्कृति के साथ शक्ति की देवी से रूप में कुलदेवी में पूजित है । विरासत में मिली इस अनूठी परंपरा में मा के कदली वृक्ष तथा डोले को छूने तथा अक्षत चावल औरिजा एवं दूब सायनाडन चढ़ाने की अनूठी परंपरा है । प्रकृति की परंपराएं मानो साक्षात देवी भगवती के रूप में विराजमान होने जा रही है जो उत्तराखंड की संस्कृति ,परंपरा ,लोक उत्सव ,जन मानस के हर्ष तथा विशिष्ट मानवीय परंपरा को प्रदर्शित करती है । प्रकृति के वो उत्पाद जो पारिस्थितिक रूप से गलन शील है तथा मानव सहित पूरे पर्यावरण को नई ऊर्जा देने का काम करते है ।

