नैनीताल:-उच्चतम न्यायालय द्वारा हालिया पारित एक आदेश से पूरे भारतवर्ष के शिक्षकों एवं उनके आश्रितों में भयंकर तनाव एवं असमंजस की स्थिति बन गई है।
भारत सरकार द्वारा अनिवार्य एवं बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम 2009 में वर्ष 2017 में किए गए एक संशोधन के कारण यह विषम स्थिति बनी है जिसमें सभी शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) की योग्यता अनिवार्य कर दी गई जबकि शिक्षक संगठनों का कहना है कि माननीय उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय भूतलक्षयी (रेट्रोस्पेक्टिव) प्रभाव कारक होने के कारण नितांत असंवैधानिक, अव्यवहारिक एवंअमानवीय है उन्होंने प्रधानमंत्री एवं शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार से तत्काल हस्तक्षेप कर इसका स्थाई समाधान करने की मांग की है।
उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संगठन की प्रांतीय सदस्य समिति के पदाधिकारी मनोज तिवारी ने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री एवं शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री सहित सभी उच्च स्तरों पर ज्ञापन भेज कर तत्काल समाधान की मांग की है।
श्री तिवारी ने कहा की न्यायालय में इस विषय पर सही पैरवी नहीं किए जाने के कारण यह स्थिति बनी है क्योंकि इस प्रकरण के सभी वैधानिक एवं व्यावहारिक पहलुओं को माननीय न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया गया क्योंकि वर्ष 2000 पूर्व से बेसिक शिक्षकों की नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता इंटरमीडिएट होती थी जबकि टेट हेतु न्यूनतम अर्हता स्नातक है, ऐसे में न्यायालय द्वारा टेट करने हेतु दी गई दो वर्ष की शिथिलता मैं इनके द्वारा टेट किया जाना संभव नहीं होगा इसी प्रकार पूर्व में नियुक्त 45% से कम अंक वाले स्नातक योग्यताधारी शिक्षक भी आज की तिथि में 2 वर्ष के भीतर तकनीकी रूप से टेट की अर्हता नहीं रखते हैं,क्योंकि टेट हेतु स्नातक में न्यूनतम 45% अंकों की बाध्यता रखी गई है, इसी प्रकार डीपीएड एवं बीपीएड योग्यता धारी शिक्षक तथा मृत्यु आश्रित कोटे के अंतर्गत नियुक्त प्रशिक्षित नानबीटीसी शिक्षक भी पात्रता परीक्षा के लिए अहर्ता नहीं रखते हैं।
उन्होंने बताया की पूर्व में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय के क्रम में बीएड की डिग्री को बुनियादी शिक्षा हेतु वैध नहीं माना गया जबकि पूर्व में इन्हीं बीएड योग्यता धारीशिक्षकों को विशिष्ट बीटीसी के आधार पर सेवायोजित किया गया क्योंकि आज की तिथि में टेट करने हेतु योग्य नहीं है।
श्री तिवारी ने कहा की वर्तमान परिपेक्ष में इस आदेश के संवैधानिक पहलुओं से भी ज्यादा इसके व्यावहारिक पक्ष पर ध्यान दिया जाना आवश्यक होगा क्योंकि इस निर्णय के चलते कई यक्ष प्रश्न खड़े हो रहे हैं कि क्या यह नियम देश के पेंशन भोगियों पर भी प्रभाव डालेगा और इससे पूर्व वह समस्त पदधारी जो वर्तमान में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं यदि उनके द्वारा ली गई डिग्री अथवा डिप्लोमा टेट योग्यताधारी शिक्षकों से प्रदान नहीं की गई तो क्या वह भी इस निर्णय से प्रभावित होंगे।
उन्होंने बताया कि संगठन इस विषय पर कानूनी प्रक्रिया सहित सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है।


