आलेख -बृजमोहन जोशी,नैनीताल
नैनीताल:-भाद्र पद महीने के कृष्ण पक्ष में जब श्री कृष्ण जन्माष्टमी आती है, उसके बाद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हरिप्रिया श्री राधा जी का जन्म हुआ अर्थात भाद्र पद शुक्ल अष्टमी को सच्चिदानंद भगवती श्री राधा जी का वृष भानु नाम की एक नगरी में राजा वृषभानु के यहां यज्ञ भूमि में प्राकट्य हुआ था। जैसे सच्चिदानंद भगवान श्री कृष्ण नित्य हैं, समय-समय पर इस भूमणडल में उनका आविर्भाव – तिरोभाव हुआ करता है,उसी प्रकार भगवती राधा जी भी नित्य हैं। वास्तव में भगवान की निजस्वरूपा – शक्ति होने के कारण वे भगवान से सर्वथा अभिन्न हैं और समय समय पर लीला के लिए आविर्भूत – तिरोभूत हुआ करती हैं।नारदपापंचरात्र, पदम् पुराण में इसका वर्णन मिलता है।इस व्रत को करने से बहुत बड़े पापों का तुरन्त नाश हो जाता है। वास्तव में श्री राधा जी भगवान श्रीकृष्ण की ही अभिन्न मूर्ति हैं।उनकी पूजा हमेशा से होती आयी है और होनी चाहिए।हम सब को चाहिए कि हम सब श्री राधा जन्माष्टमी व्रत को करने का तथा महोत्सव मनाने का प्रयास करे। श्री राधा जी की पूजा न की जाय तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखता।अत एंव समस्त वैष्णवों को चाहिए कि वे भगवती श्री राधा जी की अर्चना अवश्य करें।ये श्री राधा भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिए भगवान इनके अधीन रहते हैं।ये भगवान के महा रास की नित्य अधीश्वरी हैं। ये सम्पूर्ण मनोकामनाओं का राधन(साधन) करती हैं,इसी कारण इन देवी का नाम ” श्री राधा” कहा गया है।
आप सभी महानुभावों को श्री राधा जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई।


